नई दिल्ली: भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, लेकिन देश पर कर्ज का बोझ भी तेजी से बढ़ रहा है। चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में देश का कुल कर्ज 205 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इस दौरान डॉलर की कीमत में बढ़ोतरी का भी असर देखा गया है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष की जनवरी-मार्च तिमाही में कुल कर्ज 200 लाख करोड़ रुपये था। IndiaBonds.com के सह-संस्थापक विशाल गोयनका ने आरबीआई डेटा के आधार पर केंद्र और राज्यों पर कर्ज के बोझ का डेटा जारी किया है।
सितंबर तिमाही में केंद्र सरकार का कर्ज बढ़कर 161.1 लाख करोड़ रुपये हो गया। मार्च तिमाही में यह कर्ज 150.4 लाख करोड़ रुपये था। राज्य सरकारों का कुल कर्ज हिस्सा 50.18 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। मार्च 2023 में डॉलर 82.5441 रुपये था। यह अब बढ़कर 83.152506 रुपये हो गया है।
यह रिपोर्ट आरबीआई, सीसी और सेबी डेटा से तैयार की गई है। इसके मुताबिक, केंद्र का कर्ज बोझ कुल कर्ज का 46.04 फीसदी है, जबकि राज्यों पर कर्ज का बोझ 24.4 फीसदी है।
इस कर्ज को लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारत को चेतावनी दी है। आईएमएफ ने कहा कि यह सरकारी कर्ज मध्यम अवधि में जीडीपी के 100 प्रतिशत को भी पार कर सकता है। इसमें कहा गया है कि इससे लंबी अवधि में कर्ज चुकाने में दिक्कत आ सकती है। केंद्र सरकार ने इस पर असहमति जताई और बताया कि सरकारी कर्ज का जोखिम बहुत कम है, क्योंकि ज्यादातर कर्ज रुपये में है।
वर्ष 2014 में था 55.87 लाख करोड़ का कर्ज
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च 2014 में भारत सरकार पर 55.87 लाख करोड़ रुपए की देनदारियां थीं. इसमें से 54.04 लाख करोड़ रुपए आंतरिक ऋण और 1.82 लाख करोड़ रुपए विदेशी (बाहरी) ऋण थे.
मोदी सरकार के सत्ता में आने से लेकर अब तक इन दस सालों में लगभग 155 लाख करोड़ का कर्ज भारत पर बढ़ गया है..
नमक, माचिस से लेकर सभी बस्तुओं पर इतना टैक्स देने के बाद सवाल उठता है कि “टैक्स लेने के बाद भी कर्ज बढ़ता जा रहा है..?