बस्ती :- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा वित्त पोषित, कृषि तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, रावतपुर, कानपुर के दिशा निर्देश एवं आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या के प्रसार निदेशालय द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, बंजरिया बस्ती पर आर्या योजनान्तर्गत वेरोजगार नवयुवकों/युवतियों को गॉव स्तर पर स्वरोजगार सृजन के उद्देश्य से ‘‘बकरी पालन’’ विषय पर दिनांक 17-21 जनवरी 2023 को पांच दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया।
प्रशिक्षणार्थियों को सम्बोधित करते हुए केन्द्राध्यक्ष, डा0 एस0एन0 सिंह ने बताया कि भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार की मंशा है कि गॉव स्तर पर वेरोजगार नवयुवकों एवं नवयुवतियों को रोजगार उपलब्ध करायें जाए जिससे उनके शहरों की ओर बढ रहे पलायन को रोका जा सके। इसी उद्देश्य के तहत आप लोगों को बकरी पालन का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है क्योंकि बकरियों को कम लागत में आसानी से पाला जा सकता है और इन्हे जब चाहें, जहॉ चाहें आसानी से बेंच सकते है। इसीलिए इसे गरीबों की गाय एवं ए.टी.एम. कहा जाता है।
उन्होने यह भी अवगत कराया कि इस योजना के अन्तर्गत मशरूम उत्पादन एवं मधुमक्खी पालन पर भी स्वरोजगार सृजन हेतु वेरोजगार नवयुवकों एवं नवयुवतियों को प्रशिक्षित किया जायेगा।
पशु चिकित्सा अधिकारी, डा0 ए0के0 राय ने पशुपालन विभाग द्वारा संचालित लाभकारी योजनाओं की जानकारी प्रदान की तथा बकरियों में होने वाली बीमारियों एवं उनके निदान पर विस्तृत जानकारी प्रदान की। उन्होने बताया कि बकरियों को पी0पी0आर0 रोग का टीका अवश्य लगवाना चाहिए क्योंकि बकरियों में इस रोग का प्रकोप होने पर मृत्युदार सबसे ज्यादा होती है जिससे बकरी पालकों को काफी आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ता है।
प्रशिक्षण समन्वयक, डा0 डी0के0 श्रीवास्तव ने अवगत कराया कि बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें कोई भी व्यक्ति कम लागत एवं स्थान में आसानी से कर सकता है तथा दूध, मांस, खाल व खाद वेंचकर आय अर्जित कर सकता है। उन्होने बकरियों की आवास व्यवस्था, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों से संतुलित आहार बनाने की विधि एवं खनिजों की पूर्ति हेतु खनिज लवण मिश्रण के प्रयोग पर विस्तृत जानकारी प्रदान की।
उन्होने बताया कि देश में विभिन्न जलवायु एवं क्षेत्रीय आधार पर बकरियों की कई नस्लें है परन्तु इस जनपद में ब्लैक बंगाल, बरबरी, जमुनापारी, सिरोही आदि नस्लों को आसानी से पाला जा सकता है जो एक ब्यांत में दो या दो से अधिक बच्चे देती है।
केन्द्र के वैज्ञानिक डा0 वी0बी0 सिंह ने बताया कि बकरियों को सदैव स्वच्छ एवं ताजा पानी पिलाना चाहिए तथा गाभिन बकरियों को छोडकर हर छः माह पर पेट के कीडे मारने की दवा देनी चाहिए। विभिन्न मौसमों में बकरियों के रख-रखाव पर चर्चा करते हुए डा0 प्रेम शंकर ने बताया कि बकरियों के आवास को सदैव साफ-सुथरा तथा विछावन को बदलते रहना चाहिए क्योंकि आवास गन्दा होने पर बकरियों के शरीर पर जूॅ, किलनी लगने एवं विछावन गीला होने पर निमोनिया होने का खतरा बना रहता है।
डा0 अंजलि वर्मा, वैज्ञानिक गृहविज्ञान ने बताया कि वर्तमान में बकरियों के दूध की मॉग बाजार में बढ़ गयी है क्योंकि बकरी का दूध पोषक तत्वों से भरपूर है तथा इसमें सेलेनियम पाया जाता है जो कि डेंगू के मरीजों में प्लेटलेस बढाने एवं शरीर की क्षमता बढाने में कारगर है। इसीलिए बकरियों को पालकर दूध एवं मांस के व्यवसाय से अधिक आय अर्जित कर सकते है।
श्री हरिओम मिश्र वैज्ञानिक शस्यविज्ञान ने बकरियों के हरा चारा उत्पादन पर चर्चा करते हुए कहा कि मौसमी हरे चारे के साथ-साथ पीपल, पाकड, बरगद, सहजन, सुबबूल, बेर आदि के पौधों का भी रोपण करना चाहिए जिनकी पत्तियों को बकरियॉ बडे चाव से खाती है। संकट कालीन चारे के रूप में बहुवर्षीय-बहुकटाई वाले हाईब्रिड नैपियर घास का भी रोपण करना चाहिए क्योंकि यदि बकरियों को भरपूर हरा चारा मिलता रहता है साथ ही दाना मिश्रण की खपत कम हो जाती है।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रशिक्षणार्थियों को हाइव्रिड नैपियर घास की जड, फलदार पौध एवं प्रमाणपत्र वितरित किया गया। इस अवसर पर उपरोक्त वैज्ञानिकों के साथ-साथ केन्द्र के कर्मचारी श्री निखिल सिंह, जे0पी0 शुक्ल, प्रहलाद सिंह, योगेन्द्र सिंह, अविनाश सिंह, बनारसी एवं सीताराम उपस्थित रहें।