Nagar Bazar (Basti) – यह मौका हमें इंसानियत, इंसाफ व बराबरी के रास्ते पर चलने के लिए हौशला देने के साथ ही प्यार मोहब्बत व माफी को खुद में उतारने की सीख देता है।
मोहर्रम अधर्म पर धर्म की, झूठ पर सच की और नाइंसाफी पर इंसाफ की जीत को दिखाता है। यह इस्लामी नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। मोहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला माह होने के साथ-साथ इस्लामी मान्यताओं के अनुसार अत्यंत पवित्र महीना भी माना जाता है। मोहर्रम माह के दसवें दिन को आशूरा कहा जाता है। इसी दिन सन 680 ईस्वी में इराक के कर्बला में हजरत इमाम हुसैन और यजीद के बीच निर्णायक युद्ध हुआ था, जिसमें इमाम हुसैन ने धर्म की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। इस प्रकार, आशूरा का दिन धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का दिन हो गया।
लेकिन इमाम हुसैन तो मर कर भी जिंदा रहे और हमेशा के लिए अमर हो गए। पर यजीद तो जीत कर भी हार गया। उसके बाद अरब में क्रांति आई, हर रूह कांप उठी और हर आंखों से आंसू निकल आए और इस्लाम गालिब हुआ।
मुहर्रम में क्या करते हैं?
मुहर्रम में कई लोग रोजे रखते हैं। पैगंबर मुहम्मद सा. के नाती की शहादत तथा करबला के शहीदों के बलिदानों को याद किया जाता हैं।
करबला के शहीदों ने इस्लाम धर्म को नया जीवन प्रदान किया था। कई लोग इस माह में पहले 10 दिनों के रोजे रखते हैं। जो लोग 10 दिनों के रोजे नहीं रख पाते, वे 9 और 10 तारीख के रोजे रखते हैं। इस दिन पूरे देश में लोगों की अटूट आस्था का भरपूर समागम देखने को मिलता है। इस दिन जगह-जगह पानी के प्याऊ और शरबत की शबील लगाई जाती है।